गाँव आज भी गाँव ही है ..
बस झोपड़ियाँ ही तो खो गयी है।!
पानी की कमी से मिट्टी की सौंधी खुशबु खो गयी है.….
पेड़ो की कमी से चौपालों की छाया खो गयी है। ।
हंसी ठिठोली तो वो ही है ,
बस बुराई की छौकन जरुरी हो गयी है !!
गाँव आज भी गाँव ही है..
बस प्यार की कमी हो गयी है.…
यहाँ मोर और कोयल तो आज भी कुंकती है.…
पर गाय रंभाना भूल गयी है !!
ये वो ही गाँव है
जहाँ मेरी ' अम्माजी ' खो गयी है. .
गाँव आज भी गाँव ही है…
बस झोपड़ियाँ ही तो खो गयी है
बच्चे तो यहाँ आज भी बहुत है
पर इनकी टोली खो गयी है
हंसी ठिठोली खो गयी है !!
गाँव आज भी गाँव ही है ..
बस झोपड़ियाँ ही तो खो गयी है।!
अमित कुमार भारद्वाज (अमि )
9887978078